-
श्रीमनाचे श्लोक
श्रीसमर्थ रामदास स्वामींचे श्रीमनाचे श्लोक, श्रीसमर्थांचे हे मनाचे श्र्लोक अतिशय सोपे आहेत. मनाला आवरुन रामरूपाच्या ठायी समरसून जावे व मुक्तीचा सुखसोहळा भोगावा अशी श्रीसमर्थांची या श्र्लोकांच्या रूपाने शिकवण आहे. वाचकांनी ही २०५ मोत्यांची माळ कंठात अखंड ठेवावी व कृतार्थ व्हावे. Manache Shlok By Ramadas Swami. They teach you how to control your mind and spirit spiriually towards Lord Rama.
Type: PAGE | Rank: 2.282192 | Lang: NA
-
देवशोधन नाम - ॥ समास आठवां - दृश्यनिरसननाम ॥
श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
Type: INDEX | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
शिकवणनाम - ॥ समास पांचवां - देहमान्यनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
भीमदशक - ॥ समास तीसरा - सिकवणनिरूपणनामः ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
जगज्जोतिनाम - ॥ समास दसवां - चलाचलनिरूपणनान ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास चौथा - विवेकवैराग्यनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
स्तवणनाम - अनुक्रमणिका
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास तीसरा - सूक्ष्मआशंकानाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
देवशोधन नाम - ॥ समास सातवां - सगुणभजननाम ॥
श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
सगुणपरीक्षा - ॥ समास दसवां - बैराग्यनिरूपणनाम ॥
श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
नामरूप - ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
देवशोधन नाम - ॥ समास तीसरा - मायोद्भवनाम ॥
श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
स्तवणनाम - ॥ समास पांचवा संतस्तवननाम ॥
इस ग्रंथ के श्रवण से ही ‘श्रीमत’ और ‘लोकमत’ की पहचान मनुष्य को होगी.
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
दशक तिसरा - स्वगुणपरीक्षा
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
Type: INDEX | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
गुणरूपनाम - ॥ समास पांचवां - अनुमाननिरसननाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
सगुणपरीक्षा - ॥ समास छठवां - आध्यात्मिकताप निरूपणनाम ॥
श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मूर्खलक्षणनाम - अनुक्रमणिका
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मंत्रों का नाम - ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
दशक अठारहवां - बहुजिनसी
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
Type: INDEX | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
तत्त्वान्वय का - ॥ समास सातवां - महद्भूतनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
देवशोधन नाम - ॥ समास दसवां - अनिर्वाच्यनाम ॥
श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मंत्रों का नाम - ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास नववां- येत्नसिकवणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
गुणरूपनाम - ॥ समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
आत्मदशक - ॥ समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
अखंडध्याननाम - ॥ समास चौथा - कीर्तनलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास आठवां - आत्मदर्शननाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मंत्रों का नाम - ॥ समास दूसरा - गुरुलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
आत्मदशक - ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास सातवां - विषयत्यागनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
पूर्णदशक - ॥ समास चौथा - आत्मनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
अखंडध्याननाम - ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास सातवा - सत्वगुणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास सातवां - जगज्जीवननिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास सातवां - दास्यभक्तिनिरुपणनाम ॥
‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
भीमदशक - ॥ समास सातवां - चंचलनदीनिरूपणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास तीसरा - नामस्मरणभक्तिनाम ॥
‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
बहुजिनसी - ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
भीमदशक - ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
दशक आठवां - ज्ञानदशक मायोद्भवनाम
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
Type: INDEX | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
स्तवणनाम - ॥ समास दसवां नरदेहस्तवननिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथ के श्रवण से ही ‘श्रीमत’ और ‘लोकमत’ की पहचान मनुष्य को होगी.
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास पांचवां - अर्चनभक्तिनाम ॥
‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास तीसरा - कुविद्यालक्षणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
आत्मदशक - ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
स्तवणनाम - ॥ समास दूसरा गणेशस्तवननाम ॥
इस ग्रंथ के श्रवण से ही ‘श्रीमत’ और ‘लोकमत’ की पहचान मनुष्य को होगी.
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA
-
मंत्रों का नाम - ॥ समास सातवा - बद्धलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
Type: PAGE | Rank: 0.8011458 | Lang: NA